बुलंदशहर : उत्तर भारत में बढ़ता वायु प्रदूषण न केवल फेफड़ों की सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि प्रजनन क्षमता पर भी गहरा असर डाल रहा है। रिसर्च से पता चला है कि खराब हवा आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) की सफलता दर को कम कर सकती है। उन दंपतियों के लिए यह चुनौती और गंभीर हो जाती है, जो पहले से ही बच्चा पैदा करने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। प्रदूषण में मौजूद हानिकारक कण, जैसे पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाईऑक्साइड और सल्फर डाईऑक्साइड, शरीर में हार्मोनल असंतुलन और सूजन बढ़ा सकते हैं। ये कण पुरुषों में स्पर्म की संख्या और उसके स्तर को घटा सकते हैं, वहीं महिलाओं में यह एग्स की गुणवत्ता पर असर डालते हैं और प्रेगनेंसी की संभावनाओं को कम कर सकते हैं। डॉ. नीलम बनर्जी, सीनियर कंसल्टेंट और हेड ऑफ डिपार्टमेंट – आईवीएफ, यथार्थ हॉस्पिटल, ग्रेटर नोएडा, ने कहा, “प्रदूषण का असर आईवीएफ प्रक्रिया पर स्पष्ट रूप से देखा गया है। यह एग्स और स्पर्म दोनों की काबिलियत को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे प्रेगनेंसी की संभावनाएं घट जाती हैं। प्रदूषण से बचने के लिए दंपतियों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।”हालिया रिसर्च यह दिखाती हैं कि प्रदूषित हवा में लंबे समय तक रहने वाले लोगों को आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान एग्स की संख्या कम मिलती है। इसके अलावा, प्रदूषण से जुड़े ऑक्सीडेटिव तनाव के कारण डीएनए को नुकसान हो सकता है, जिससे गर्भधारण की संभावना घट जाती है और गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। उत्तर भारत के शहर, खासकर दिल्ली-एनसीआर, सर्दियों के दौरान जहरीले धुंध से ढके रहते हैं। इस समय हवा की गुणवत्ता कई गुना खराब हो जाती है, जिससे आईवीएफ कराने वाले दंपतियों के लिए चुनौतियां और बढ़ जाती हैं। इन जोखिमों से बचने के लिए घर में एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें, हाई-पॉल्यूशन दिनों में बाहर जाने से बचें, और ऐसा संतुलित आहार लें जिसमें एंटीऑक्सीडेंट्स शामिल हों।आईवीएफ की सफलता में हर छोटा कदम मायने रखता है। प्रदूषण के खतरे को कम करने के लिए जागरूकता बढ़ाना और सही उपाय अपनाना बेहद जरूरी है। दंपतियों को चाहिए कि वे डॉक्टर से सही समय पर सलाह लें और अपने जीवन में छोटे-छोटे बदलाव करें।प्रदूषण के बढ़ते खतरे को देखते हुए, इसे गंभीरता से लेना आवश्यक है। व्यक्तिगत सावधानी और सामूहिक प्रयास से न केवल प्रजनन स्वास्थ्य को बेहतर किया जा सकता है, बल्कि स्वस्थ भविष्य की ओर कदम बढ़ाया जा सकता है। जागरूकता और सही कदम ही प्रदूषण के इस गंभीर प्रभाव को कम कर सकते हैं।

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