अति सर्वत्र वर्जते, जो नहीं है उसी का नाम माया है, जल है तो कल है -सोनेंद्र कृष्ण शास्त्री भागवत कथा महोत्सव के तीसरे दिन की चर्चा

औरंगाबाद : बुलंदशहर भगवताचार्य सोनेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कहा कि अति सर्वत्र वर्जते। अतः मनुष्य को जीवन में अति से बचना चाहिए अति किसी भी बात की क्यों ना हो इससे सदैव मनुष्य को हानि ही होती है ‌। आचार्य सोनेंद्र कृष्ण शास्त्री बुधवार को प्राचीन नागेश्वर मंदिर परिसर स्थित रामलीला मैदान में चल रही भागवत कथा महोत्सव के तीसरे दिन व्यास गद्दी से सैकड़ों श्रद्धालुओं को भागवत कथा द्वारा धर्म लाभ करा रहे थे। उन्होने कहा कि जो नहीं है उसी का नाम माया है। माया जाल में फंसकर ही जीव का पतन होता है। भक्ति ही भव सागर से पार लगाती है और माया के दुष्प्रभाव से बचाती है। उन्होने अपने प्रवचन में प्राणी मात्र को जल संरक्षण का संदेश देते हुए कहा कि जल ही कल है। पानी का अपव्यय रोकने के लिए हर किसी को आगे आना होगा वरना आने वाली पीढ़ियों को जल ही नसीब नहीं हो पायेगा।श्री धाम वृंदावन से पधारे भगवताचार्य ने तीसरे दिन की कथा का शुभारंभ सती जी की कथा के साथ किया। उन्होने बताया कि भगवान शिव की अर्धांगिनी सती माता दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं । अपने पिता के यज्ञ में अपने पति भगवान शिव के अपमान से क्षुब्ध होकर उन्होने अपने प्राणों की आहूति दी थी । उन्होने ही पार्वती के रूप में पुनः जन्म लिया और अपने आराध्य देव भगवान शिव का वरण किया था।उन्होने अजामिल की कथा सुनाई और बताया कि अजामिल ने डकैत बन जाने के बाबजूद एक ऋषि की प्रेरणा से अपने पुत्र का नाम नारायण रखा । अंत समय में नारायण को पुकारा जिसके चलते वह सद्गति प्राप्त कर सका। अंत समय में भगवान का स्मरण मोक्ष प्रदान करता है।भगवताचार्य ने भक्त प्रह्लाद की कथा का मनोहारी वर्णन किया और भक्त प्रह्लाद की झांकी सजाई गई जिसे श्रृद्धालुओं ने मुक्त कंठ से सराहा। कथा के मध्य भक्ति गीतों का गायन किया गया जिसके चलते समूचा श्रोता समाज भाव विभोर हो उठा। आरती और प्रसाद वितरण कर तीसरे दिन की कथा को विश्राम दिया गया। आयोजकों ने कथा के समय में परिवर्तन की भी घोषणा की जिसके अनुसार आगामी दिनों में कथा दोपहर एक बजे से शाम पांच बजे तक हुआ करेगी। सैकड़ों लोग मौजूद रहे।

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