दशरथ : कौशल्या प्रमोद में अद्भुत भाव उभर आयेलक्ष्मण,भरत,शत्रुघ्न तीन सुत कैकयी-सुमित्रा ने जाये।साथ-साथ इनका भी ऋषि ने नामकरण संस्कार कियाचारों की छवि थी अनूप विधि ने भी खूब दुलार किया।शनै-शनै हो गये बड़े परिवार खूब खुशहाल हुआधन्य अयोध्या नगरी का हर जन ही मालामाल हुआ।सीता और उर्मिला दोनों जनक सुता अति प्यारी थींकुशध्वज की श्रुतिकीर्ति मांडवी पुत्री जग में न्यारी थीं तोड़ सभा में धनु शिव का वीरोचित कृत्य अपार कियापरिणय-सूत्र जानकी ने श्रीराम संग स्वीकार किया।देवों ने की पुष्पवृष्टि सिय-रघुवर का अभिसार हुआलक्ष्मण भरत और शत्रुहन का भी परिणय संस्कार हुआ।लक्ष्म सँग उर्मिला प्रिय मांडवी भरत को प्यारी थीप्रिय शत्रुहन के संग में श्रुतिकीर्ति की जोड़ी न्यारी थी।चारों भाई संग संगिनी जीवनपथ में साथ हुएसृष्टिचक्र के भँवरजाल में थाम हाथ में हाथ हुएटेढ़ी चाल काल ने चलकर क्या-क्या उनके संग कियाबनी मंथरा कारण जिसका सभी रंग में भंग किया।राजतिलक था जब रघुवर का किन्तु नहीं हो पाया थाकैकयी माँ ने पुत्र मोहवश ऐसा जाल बिछाया था।वचनबद्ध राजा दशरथ थे कैकेयी ने हठ ठानी थीतीन वचन नृप से भरवाकर बदली सभी कहानी थी।राजतिलक हो भरत पुत्र का जिसका वह हकदार सहीचौदह वर्ष वनवास राम को माँग लिया उसने तब ही।वचन दिया था जो दशरथ ने उसको पूर्ण निभाना थाचौदह वर्ष राम को अपने वन-वन में भटकाना था।प्राण तजे पर वचन न छोड़ा वन को भेजे रघुराई अमिट रीति रघुकुल की जग ने राजा दशरथ से पाई।सीता हरण किया रावण ने पार उसे भव करना थाइसी लिए सीता को हरकर राम के हाथों मरना था।भक्त जटायु ने भी अपना पूरा धर्म निभाया थातभी राम के शुभ हाथों से निज उद्धार कराया था।फर्ज निभाया था हनुमत ने बने राम के प्यारे जोसीता माँ ने भी पहचाने कभी न हिम्मत हारे जोपुरुषोत्तम कहलाये स्वामी भक्तों का निस्तार किया संस्कृति के संवाहक बनकर कर्म धर्म अनुसार किया।कोटि-कोटि वन्दन अभिनंदन जग के पालनहार सुनोताप हरो सबके प्रभु सारे सबकी करुण गुहार सुनो।।नाम तुम्हारा ही रटें, सब ही प्रभु आठों यामजय जय जय श्रीराम जी,काटो कष्ट तमाम।। – संगीता अहलावत

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