ज़िला कृषि औघोगिक एवं सांस्कृतिक प्रदर्शनी बुलन्दशहर (बुलंदशहर महोत्सव 2025) में बुधवार रात्रि कुल हिन्द मुशायरे का शानदार आयोजन किया

बुलंदशहर : में ज़िला कृषि औघोगिक एवं सांस्कृतिक प्रदर्शनी बुलन्दशहर (बुलंदशहर महोत्सव 2025) में बुधवार रात्रि कुल हिन्द मुशायरे का शानदार आयोजन नदीम अख्तर के संयोजन में सम्पन्न हुआ।विश्वप्रसिद्ध शायर प्रो वसीम बरेलवी की सदारत और मशहूर नाज़िम बदायूं से आये शायर डा० हिलाल बदायूनी की निजामत में शायरों ने अपने एक से बढ़कर एक कलामो को सुनाकर शमायीन को बांधे रखा । मुशायरे में मुख्य अतिथि के रूप में अनूपशहर विधायक श्री संजय शर्मा जी एवं विशिष्ट अतिथि प्रदर्शनी समिति के उपाध्यक्ष ठा सुनील सिंह ने शमां रोशन करके मुशायरा का शुभारंभ किया। सभी शायरो नें आर्टिस्ट वेलफेयर एसोसिएशन एवं नव आरम्भ फाउंडेशन के जरिये उर्दू अदब की ख़िदमात के लिये मुशायरे के आयोजक नदीम अख्तर को “शानें अदब “ अवार्ड से सम्मानित किया ।शायर निजामी राही ने खुदा की शान में नात एवं शबीना अदीब ने कौमी तराना पढ़ से मुशायरे की शुरुआत की।मुशायरों के दरख़्त मुशायरों की जान प्रोफ़ेसर बसीम बरेलवी साहब ने अपना कलाम पेश करते हुए पढ़ा सरपरस्ती भी कही जाये तो बस नाम की है आसमाँ तेरी बुलन्दी मेरे किस काम की है कल खुदा जाने किसका यहाँ बसेरा होगा आज इस घर पर जो तख़्ती है मेरे नाम की हैकानपुर से तशरीफ़ लाये वरिष्ठ शायर जौहर कानपुरी ने अपना कलाम पढ़ा कियही बताया गया है यही पढ़ाया गया है के जिस चमन में रहो उस चमन से इश्क़ करोवतन पे मिटना तो है नेक काम अपने लिए मेरे नबी ने कहा है वतन से इश्क़ करो।अन्तरराष्ट्रीय शायरा मोहतरमा शबीना अदीब ने अपने कलाम अपनी डाली से बिछड़े अलग हो गये पेड़ के सारे पत्ते अलग हो गये ईश्वर भी वही हैं खुदा भी वही जाने क्यूँ उसके बंदे अलग हो गये पर समायीनो से भरपूर दाद ली।मुजफ्फरनगर से आए शायर ख़ुर्शीद हैदर ने सुनाया गैर परो पर उड़ सकते है हद से हद दीवारों तक, अम्बर पर तो वही उड़ेंगे जिनके अपने पर होंगे ।दिल्ली से आये उस्ताद शायर मंगल नसीम ने सुनाया जाते हुए वो बोल कर एक ऐसा सच गया जो सच हर एक शख़्स का चेहरा खुरच गया मुझको था ये ख़याल कि उसने बचा लिया उसको था ये मलाल कि ये कैसे बच गया।डा अना देहलवी ने कलाम पेश किया कीपत्थरों में हर पत्थर देवता नहीं होता साफ कितना पानी आईना नहीं होता मंजिलों को पाने में एक उम्र लगती है एड़ियां उठाने से कद बड़ा नहीं होता ।देवबंद से आये मजाहिया शायर जहाज़ देवबंदी ने अपने इस कलाम से समायिनो को ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया हैसियत अपनी ज़माने को दिखाने के लिए मैने एक आदमी रखा है खुजाने के लिएमेरी खुजली मेरी पहचान बनी है वरनालोग मर जाते हैं पहचान बनाने के लिए। लखनऊ से तशरीफ़ लायी शायरा वंदना अनम ने सुनाया इश्क़ तुमसे जो कर लिया मैंने अपने दामन को भर लिया मैंनेजी भर के तुम्हें देखूँ गर तुमको गवारा होबेताब ये नज़रें हो और चेहरा तुम्हारा होइंटरनेशनल शायर अज़हर इक़बाल ने कलाम पढ़ा है साक्षी काशी का हर एक घाट अभी तक होता था भजन आपका शहनाई हमारी ।जाने वो बच्चे कहां किन रास्तों में खो गएजो बड़े बूढ़ों को जाते थे नमन करते हुए ।शनाख़्त जो शहे अकबर की थी हुमायूँ से ।हिलाल की वही पहचान है बदायूँ से ।निजामत के साथ साथ शायर डॉ हिलाल बदायूँनी ने सुनाया मुक़द्दर में हमारे कब है बिस्तर ।सफ़र में नींद पूरी कर रहे हैं ।बेहट से आये शायर साबिर बेहटवी ने शेर पढ़ा बच्चा जो भीक मांगने उसकी तरफ चला जरदार ने चढ़ा लिया शीशा भी कार का भले ज़रा सा हो लेकिन ज़रूर होता है बुलंदियों पे पहुंचकर गुरूर होता है ।लखनऊ से आये शायर फहद रईस अंसारी ने सुनाया किसको फुर्सत के तेरे नाज़ उठाने आता हम ना होते तो तुझे कौन मनाने आता जब गिरे बर्फ पहाड़ों पे चले सर्द हवा ऐसे मौसम में कभी आग लगाने आता।नौजवान शायर सुहैल अली बर्नी ने सुनाया वो वक़्त था जो रहे ना सका गुज़र गयाएक ख़्वाब था जो आँखें खुली बिखर गया ।

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