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अल्लामा शिवली नोमानी स्वतंत्रता सेनानी, शैक्षिक विचारक, दार्शनिक, इतिहासकार, लेखक, सुधारक थे सैयद मुनीर अकबर

बुलंदशहर : उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग के चेयरमैन जनाब शाहनवाज आलम साहब के निर्देशानुसार उत्तर प्रदेश कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश उपाध्यक्ष सैयद मुनीर अकबर ने आज दिनांक 18 नवंबर को अल्लामा शिवली नोमानी साहब की पुण्यतिथि पर उनकी फोटो पर माल्यार्पण का कार्यक्रम करके सभी कांग्रेस जनों ने उन्हें खिराजे अकीदत पेश की।
इस मौके पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश उपाध्यक्ष सैयद मुनीर अकबर ने कहा कि अल्लामा शिबली नोमानी एक स्वतंत्रता सेनानी, इस्लामी विद्वान , कवि , दार्शनिक , इतिहासकार , शैक्षिक विचारक, लेखक, वक्ता, सुधारक और ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के प्राच्यवादियों के आलोचक थे ।

उन्हें उर्दू इतिहास लेखन का जनक माना जाता है । वह अरबी और फ़ारसी भाषाओं में भी पारंगत थे। शिबली इस क्षेत्र के दो प्रभावशाली आंदोलनों, अलीगढ़ और नदवा आंदोलनों से जुड़े थे। देवबंदी स्कूल के समर्थक के रूप में उनका मानना ​​था कि अंग्रेजी भाषा और यूरोपीय विज्ञान को शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाना चाहिए।

शिबली ने मुस्लिम नायकों की कई जीवनियाँ लिखीं, उन्हें विश्वास था कि उनके समय के मुसलमान अतीत से मूल्यवान सबक सीख सकते हैं। अतीत और आधुनिक विचारों के उनके संश्लेषण ने 1910 और 1935 के बीच उर्दू में उत्पादित इस्लामी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। शिबली जी ने इस्लामी छात्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए 1914 में दारुल मुसन्नेफिन शिबली अकादमी की स्थापना की और 1883 में शिबली नेशनल कॉलेज की भी स्थापना की।

उन्होंने पैगंबर मुहम्मद के जीवन पर बहुत सारी सामग्री एकत्र की, वह नियोजित कार्य, सीरत अल-नबी के केवल पहले दो खंड ही पूरा कर सके । उनके शिष्य सुलेमान नदवी ने इस सामग्री को जोड़ा और शिबली जी की मृत्यु के बाद शेष पाँच खंड लिखे।

प्रदेश उपाध्यक्ष सैयद मुनीर अकबर ने आगे कहा कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में पराजय के बाद भारत के मुसलमान ब्रिटिश शासकों के विशेष निशाने पर थे। उन्होंने मुस्लिम समुदाय के जीवन और संपत्तियों को नष्ट कर दिया और ईसाई मिशनरियों को इस्लाम के खिलाफ प्रचार करने के लिए भी प्रोत्साहित किया। वैश्विक स्तर पर, प्राच्यवादियों और पश्चिमी विद्वानों ने भी इस्लामी आस्था, इतिहास और सभ्यता पर अपना बौद्धिक हमला जारी रखा। सर सैयद अहमद खान (एमएओ कॉलेज अलीगढ़ के संस्थापक) और मौलाना कासिम नानोतवी (दारुल-उलूम देवबंद के संस्थापक) दो उल्लेखनीय व्यक्तित्व थे जिन्होंने इस हमले का जवाब दिया। अल्लामा शिबली नोमानी ने अपने पूर्ववर्तियों के अनुभवों से सीखा और सीखने के पूरे क्षेत्र में तिशीलता लाने के लिए एक व्यापक शिक्षा योजना विकसित की।

इस मौके पर मुख्य रूप सलीम खान साहिल शेख वहीद अली जिशान अहमद विशाल सिंह बिलाल खान साहिल खान आमिर खान आबिद हुसैन आदि लोग मौजूद थे

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