औरंगाबाद (राजेन्द्र अग्रवाल) : जहां एक ओर कस्बे की जनता ने चेयरमैन और सभासदों को चुनकर जीत का मार्ग प्रशस्त कर अपना फैसला वोट के रूप में लाक कर दिया है वहीं दूसरी ओर जनता के फैसले को जानने के लिए कयासों के दौर शुक्रवार को पूरी शिद्दत से जारी रहे।
लगभग एक पखवाड़े की भागदौड़ भरी जिंदगी जीते आ रहे तमाम प्रत्याशियों के लिए शुक्रवार का दिन राहत और बेचैनी का मिला जुला संगम लेकर आया। प्रत्याशियों के समर्थक यह जानते हुए भी कि चुनाव परिणाम उनके पक्ष में नहीं आने वाला है दिलाशा देते नहीं नहीं नजर आये।
हालांकि स्वयं रण बांकुरों को भी पता है कि हमदर्दी के सिवा बातों में दम नहीं है। लाटरी ही लग जाये तो बात अलग है वरना परिणाम उनके पक्ष में आने वाला नहीं है। बाजी हाथ है निकल चुकी है।
सबसे ज्यादा दिलचस्पी अध्यक्ष पद को लेकर है। गुरुवार को हुए मतदान में जहां एक ओर टक्कर लड़का लड़की और साईकिल में दिखाई पड़ रही थी वहीं दूसरी ओर गदा ने फूल का काम तमाम करने में कोई कसर उठा कर बाकी नहीं रखी।
लोग कहते नजर आ रहे थे इस घर को आग लग गई घर के चिराग से
कोई कहता था गैरों में कहां दम था अपने ही दुश्मन बन गये
अधिकांश जगहों पर लड़का लड़की दौड़ लगा रहे थे तो कहीं साइकिल की रफ्तार आसमान छू रही थी। दौड़ गदा भी कम नहीं रही थी लेकिन उसका प्रहार लड़का लड़की या साइकिल पर नहीं बल्कि फूल को बुरी तरह रौंदने और तहस-नहस करके जमींदोज करने पर ही था।
साइकिल या लड़का लड़की को पीटने का उसका मकसद कहीं से कहीं तक नज़र नहीं आ रहा था।
वार्ड सभासद पद हेतु लोगों ने अपनी पसंद ना पसंद पहले से ही निर्धारित कर रखी थी। उसी के अनुसार परिणाम भी आने वाले हैं। वार्डों में प्रत्याशियों के बीच एक दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला। अधिकांश वार्डों में प्रत्याशी अपनी जीत के लिए नहीं खड़े हुए थे बल्कि जीतने वाले प्रत्याशी को हराने अथवा नीचा दिखाने की गरज से खड़े हुए थे। ऐसे प्रत्याशियों का सिर्फ एक ही मक़सद था कि उसे हराना है हम तो फिर भी नहीं जीत सकते। हम तो हारेंगे सनम जीतने तुम को भी नहीं देंगे का राग अलाप रहे कुछ अपने मकसद में कामयाब भी रहे हैं।
जहां तक सत्तारूढ़ भाजपा का सवाल है टिकट वितरण से लेकर चुनाव प्रचार अभियान तक में भेदभाव अवसर वादिता अपना नफा नुकसान देखा गया जिसका परिणाम शनिवार को सबके सामने होगा। कहना ग़लत ना होगा कि पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर खुद उसी के चाटूकारों ने लगाने में कोई कंजूसी नहीं बरती। अन्दर घात का परिणाम कितना भयानक होता है यह शनिवार को स्पष्ट हो जायेगा उससे पहले तो सब वाह वाह बहुत खूब कह ही सकते हैं। औरंगाबाद नगर पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव परिणाम भाजपा के नीति निर्धारकों को लोकसभा चुनावों में पार्टी प्रत्याशी तय करते समय सोचने के लिए विवश करेगा इसमें कोई शक सुबहा दिखाई नहीं पड़ता।